Sampurn Shrimad Bhagavad Gita
- नीचे दिए गए टेबल में सम्पूर्ण भगवद गीता गीता हिंदी में हर अध्याय और उसमे उल्लेखित विशेषताओं का लिंक दिया गया है जिसे आप क्लिक करके पढ़ सकते हैं :
सम्पूर्ण भगवद गीता गीता हिंदी में व्यापक प्रकाशन और पठन होता रहा है , किन्तु मूलतः यह संस्कृत महाकाव्य महाभारत की एक उपकथा के रूप में प्राप्त है । महाभारत में वर्तमान कलियुग तक की घटनाओं का विवरण मिलता है ।
इसी युग के प्रारम्भ में आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र तथा भक्त अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था । उनकी यह वार्ता , जो मानव इतिहास की सबसे महान दार्शनिक तथा धार्मिक वार्ताओं में से एक है , उस महायुद्ध के शुभारम्भ के पूर्व हुई , जो धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों तथा उनके चचेरे भाई पाण्डवों के मध्य होने वाला भ्रातृघातक संघर्ष था ।
धृतराष्ट्र तथा पाण्डू भाई – भाई थे जिनका जन्म कुरुवंश में हुआ था और वे राजा भरत के वंशज थे , जिनके नाम पर ही महाभारत नाम पड़ा । चूंकि बड़ा भाई धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था , अतएव राजसिंहासन उसे न मिलकर उसके छोटे भाई पाण्डु को मिला । पाण्डु की मृत्यु बहुत ही कम आयु में हो गई , अतएव उसके पांच पुत्र – युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन , नकुल तथा सहदेव, धृतराष्ट्र की देखरेख में रख दिये गये , क्योंकि उसे कुछ काल के लिए राजा बना दिया गया था ।
इस तरह धृतराष्ट्र तथा पाण्डु के पुत्र एक ही राजमहल में बड़े हुए । दोनों ही को गुरु द्रोण द्वारा सैन्यकला का प्रशिक्षण दिया गया और पूज्य भीष्म पितामह उनके परामर्शदाता थे । तथापि धृतराष्ट्र के पुत्र , विशेषतः सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन पाण्डवों से घृणा और ईष्या करता था ।अन्ततः चतुर दुर्योधन ने पाण्डवों को जुआ खेलने के लिए ललकारा ।
उस द्यूतक्रीड़ा में छल के प्रयोग के कारण पाण्डव हार गए तथा उन्हें अपने राज्य से वंचित होना पड़ा और तेरह वर्ष तक वनवास के लिए जाना पड़ा । बनवास से लौटकर पाण्डवों ने धर्मसम्मत रूप से दुर्योधन से अपना राज्य मांगा , किन्तु उसने देने से इनकार कर दिया । जब उनकी याचना अस्वीकृत हो गई , तो युद्ध निश्चित था ।
तथामि कृष्ण ने विपक्षियों की इच्छानुसार ही युद्ध में सम्मिलित होने का प्रस्ताव रखा । वे स्वयं एक परामर्शदाता तथा सहायक के रूप में उपस्थित रहेंगे ।इस प्रकार कृष्ण अर्जुन के सारथी बने और उन्होंने उस सुप्रसिद्ध धनुर्धर का रथ हiकना स्वीकार किया । इस तरह हम उस बिन्दु तक पहुंच जाते हैं जहाँ से भगवद गीता का शुभारम्भ होता है – दोनों ओर को सेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी है और धृतराष्ट्र अपने सचिव सज्जय से पुछ रहा है कि उन रोनाओं ने क्या किया ?
इस तरह सारी पृष्ठभूमि तैयार है । आवश्यकता है केवल इस अनुवाद तथा भाष्य के विषय में संक्षिपा टिप्पणी की । भगवद्गीता के अंग्रेजी अनुवादकों में यह सामान्य प्रवृत्ति पाई जाती है कि वे अपनी विचारधारा तथा दर्शन को स्थान देने के लिए कृष्ण नामक व्यक्ति को ताक पर रख देते हैं ।
जैसा कि भगवद गीता स्वयं अपने विषय में कहती है । अतः यह अनुवाद तथा इसी के साथ संलग्न भाष्य पाठक को कृष्ण की ओर निर्देशित करता है , उनसे दूर नहीं ले जाता । इस दृष्टि से भगवदगीता धारूप अनुपम है । साथ ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस तरह यह पूर्णतया ग्राह्य तथा संगत बन जाती है
इस प्रयास में हमने सम्पूर्ण भगवद गीता हिंदी में के 18 अध्यायों और उनके संस्कृत श्लोकों का सरल अनुवाद हिंदी सहित किया है ।
जिसे आप लिंक क्लिक करके पढ़ सकते हैं : -
सैन्यनिरीक्षण ~ अध्याय एक
- श्लोक 01 – 11 कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण
- श्लोक 12 – 19 दोनो सेनाओं के युद्ध शंखनादो की व्याख्या
- श्लोक 20 – 27 अर्जुन के शस्त्रों की परीक्षा
- श्लोक 28 – 47 भगवान कृष्ण नामों की व्याख्या
गीता का सार ~ अध्याय दो
- श्लोक 01-10 अर्जुन की कायरता पर श्री कृष्ण और अर्जुन संवाद
- श्लोक 11-30 गीताशास्त्र का उपदेश
- श्लोक 31-38 क्षत्रिय धर्म का वर्णन
- श्लोक 39-53 कर्मयोग का उपदेश
- श्लोक 54-72 स्थिरबुद्धि प्राणी के लक्षण
कर्मयोग ~ अध्याय तीन
- श्लोक 01-08 ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की आवश्यकता
- श्लोक 09-16 यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता तथा यज्ञ की महिमा का वर्णन
- श्लोक 17-24 ज्ञानवानऔर भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता
- श्लोक 25-35 अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिएप्रेरणा
- श्लोक 36-43 पाप के कारणभूत कामरूपी शत्रु को नष्ट करने का उपदेश
ज्ञानकर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय चार
- श्लोक 01-15 योग परंपरा , भगवान के जन्म कर्म की दिव्यता , भक्त लक्षण भगवत्स्वरूप
- श्लोक 16-18 कर्म-विकर्म एवं अकर्म की व्याख्या
- श्लोक 19-23 कर्म में अकर्मता-भाव, नैराश्य-सुख, यज्ञ की व्याख्या
- श्लोक 24-33 फलसहित विभिन्न यज्ञों का वर्णन
- श्लोक 34-42 ज्ञान की महिमा तथा अर्जुन को कर्म करने की प्रेरणा
कर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय पाँच
- श्लोक 01-06 ज्ञानयोग और कर्मयोग की एकता , सांख्य पर का विवरण और कर्मयोगकी वरीयता
- श्लोक 07-12 सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा
- श्लोक 13-26 ज्ञानयोग का विषय
- श्लोक 27-29 भक्ति सहित ध्यानयोग तथा भय , क्रोध , यज्ञ आदि का वर्णन
आत्मसंयमयोग ~ छठा अध्याय
- श्लोक 01-04 कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ के लक्षण, काम-संकल्प-त्याग कामहत्व
- श्लोक 05-10 आत्म-उद्धार की प्रेरणा और भगवत्प्राप्त पुरुष के लक्षण एवं एकांतसाधना का महत्व
- श्लोक 11-15 आसन विधि , परमात्मा का ध्यान , योगी के चार प्रकार
- श्लोक 16-32 विस्तार से ध्यान योग का विषय
- श्लोक 33-36 मन के निग्रह का विषय
- श्लोक 37-47 योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा
ज्ञानविज्ञानयोग ~ सातवाँ अध्याय
- श्लोक 01-07 विज्ञान सहित ज्ञान का विषय , इश्वर की व्यापकता
- श्लोक 08-12 संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से भगवान की व्यापकता का कथन
- श्लोक 13-19 आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा
- श्लोक 20-23 अन्य देवताओं की उपासना और उसका फल
- श्लोक 24-30 भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा
अक्षरब्रह्मयोग ~ आठवाँ अध्याय
- श्लोक 01-07 ब्रह्म , अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर
- श्लोक 08-22 भगवान का परम धाम और भक्ति के सोलह प्रकार
- श्लोक 23-28 शुक्ल और कृष्ण मार्ग का वर्णन
राजविद्याराजगुह्ययोग ~ नौवाँ अध्याय
- श्लोक 01-06 परम गोपनीय ज्ञानोपदेश , उपासनात्मक ज्ञान , ईश्वर का विस्तार
- श्लोक 07-10 जगत की उत्पत्ति का विषय
- श्लोक 11-15 भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और देवी प्रकृति वालों के भगवद् भजन का प्रकार
- श्लोक 16-19 सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन
- श्लोक 20-25 सकाम और निष्काम उपासना का फल
- श्लोक 26-34 निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा
विभूतियोग ~ दसवाँ अध्याय
- श्लोक 01-07 भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल
- श्लोक 08-11 फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का वर्णन
- श्लोक 12-18 अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना
- श्लोक 19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन
विश्वरूपदर्शनयोग ~ ग्यारहवाँ अध्याय
- श्लोक 01-04 विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना
- श्लोक 05-08 भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन
- श्लोक 09-14 संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन
- श्लोक 15-31 अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना
- श्लोक 32-34 भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना
- श्लोक 35-46 भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना
- श्लोक 47-50 भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का वर्णन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना
- श्लोक 51-55 बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन।
भक्तियोग ~ बारहवाँ अध्याय
- श्लोक 01-12 साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन
- श्लोक 13-20 भगवत्-प्राप्त पुरुषों के लक्षण
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग ~ तेरहवाँ अध्याय
गुणत्रयविभागयोग ~ चौदहवाँ अध्याय
- श्लोक 01-04 ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति
- श्लोक 05-18 सत् , रज , तम- तीनों गुणों का वर्णन
- श्लोक 19-27 भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण
पुरुषोत्तमयोग ~ पंद्रहवाँ अध्याय
- श्लोक 01-06 संसाररूपी अश्वत्वृक्ष का स्वरूप और भगवत्प्राप्ति का उपाय
- श्लोक 07-11 इश्वरांश जीव, जीव तत्व के ज्ञाता और अज्ञाता
- श्लोक 12-15 प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का वर्णन
- श्लोक 16-20 क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विश्लेषण
दैवासुरसम्पद्विभागयोग ~ सोलहवाँ अध्याय
- श्लोक 01-05 फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन
- श्लोक 06-20 आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन
- श्लोक 21-24 शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा
श्रद्धात्रयविभागयोग ~ सत्रहवाँ अध्याय
- श्लोक 01-06 श्रद्धा और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय
- श्लोक 07-22 आहार, यज्ञ, तप और दान केपृथक-पृथक भेद
- श्लोक 23-28 ॐतत्सत् के प्रयोग की व्याख्या
मोक्षसंन्यासयोग ~ अठारहवाँ अध्याय
- श्लोक 01-12 त्याग का विषय
- श्लोक 13-18 कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन
- श्लोक 19-40 तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान , कर्म , कर्ता , बुद्धि ,धृतिऔर सुख के पृथक-पृथक भेद
- श्लोक 41-48 फल सहित वर्ण धर्म का विषय
- श्लोक 49-55 ज्ञाननिष्ठा का विषय
- श्लोक 56-66 भक्ति सहित कर्मयोग का विषय
- श्लोक 67-78 श्री गीताजी का माहात्म्य
सारांश
सम्पूर्ण भगवद गीता हिंदी में के वक्ता एवं उसी के साथ चरम लक्ष्य भी स्वयं कृष्ण है अतएव यही एकमात्र ऐसा अनुवाद है जो इस महान शास्त्र को यथार्थ रूप में प्रस्तुत करता है । संस्कृतपीडिया के माध्यम से भी हम सम्पूर्ण भगवद गीता हिंदी में का सरल हिंदी अनुवाद करने का प्रयास किया गया है ।
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