श्री रामचंद्र जी की आरती , राम नवमी, विजय दशमी के पावन त्योहार के दिन भगवान राम की पूजा विशेष रूप से की जाती है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार ये पर्व भगवान राम के जन्मदिवस की खुशी के तौर पर मनाया जाता है। कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान राम का जन्म हुआ था।
इस दिन भगवान राम के साथ माता सीता, भगवान हनुमान और लक्ष्मण जी की भी पूजा होती है। राम नवमी के दिन कई लोग अपने घरों में श्री रामचंद्र जी की आरती और हवन भी करते हैं। कोई भी पूजा बिना श्री रामचंद्र जी की आरती के अधूरी मानी जाती है।
इसलिए राम नवमी के दिन भी भगवान राम की पूजा के समय प्रमुखता से की जाने वाली श्री रामचंद्र जी की आरती…… जरूर करें।
श्री रामचंद्र जी की आरती
श्री रामचन्द्र कृपाल भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन , कंज – मुख कर कंज पद – कंजारूणम् ॥ १ ॥
श्री रामचन्द्र कृपाल भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ….
नवकंज लोचन , कंज – मुख कर कंज पद – कंजारूणम् …
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम’
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम” ॥ दोहराएं ॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि , नवनील – नीरद – सुन्दरम् ।
पटपीत मानहु तड़ित रूचि सुचि नौमि जनक सुता – वरम् ॥ २ ॥
श्री रामचन्द्र कृपाल भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ….
नवकंज लोचन , कंज – मुख कर कंज पद – कंजारूणम् …
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम’
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम” ॥ दोहराएं ॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दम् ।
रघुनंद आनन्दकंद कौशलचन्द्र दशरथ – नन्दनम् ॥ ३ ॥
श्री रामचन्द्र कृपाल भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ….
नवकंज लोचन , कंज – मुख कर कंज पद – कंजारूणम् …
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम’
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम” ॥ दोहराएं ॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारू उदार अंग विभूषणम् ।
आजानुभुज शर – चाप – धर संग्राम – जित – खर – दूषणम् ॥ ४ ॥
श्री रामचन्द्र कृपाल भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ….
नवकंज लोचन , कंज – मुख कर कंज पद – कंजारूणम् …
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम’
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम” ॥ दोहराएं ॥
इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष मुनि मन रंजनम् ।
मम हृदय कंज निवास कुरू कामादि – खल -दल – गंजनम् ॥ ५ ॥
श्री रामचन्द्र कृपाल भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ….
नवकंज लोचन , कंज – मुख कर कंज पद – कंजारूणम् …
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम’
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम” ॥ दोहराएं ॥
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरू सहज सुन्दर सवारो ।
करूणा निधान सुजान शील सनेहु , जानत रावरो ॥ ६ ॥
श्री रामचन्द्र कृपाल भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ….
नवकंज लोचन , कंज – मुख कर कंज पद – कंजारूणम् …
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम’
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम” ॥ दोहराएं ॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हिएँ हरषीय अली ।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि -२ मुदित मन मन्दिर चली ।
श्री रामचन्द्र कृपाल भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ….
नवकंज लोचन , कंज – मुख कर कंज पद – कंजारूणम् …
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम’
‘जय श्री राम’ से ‘जय सिया राम” ॥ दोहराएं ॥
सोरठा :
जानि गौरि अनुकूलसिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥
श्री रामचंद्र जी की आरती सूने : -
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