आरती कुंजबिहारी की||आरती कुंजबिहारी की लिरिक्स|| Powerful Aarti Kunj Bihari Ki 1

आरती कुंजबिहारी की एक दिव्य आरती है, जो भगवान श्री कृष्ण के अनुरूप भजन के रूप में गायी जाती है। इस आरती की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण और उनकी भक्तों के बीच में हुई संवाद से होती है। इस आरती में श्री कृष्ण के अनुभव, उनके अनुग्रह, उनके अनुरूप गुणों और उनकी प्रेम के बारे में व्यक्त किया गया है।

इस आरती का गाया जाना भगवान श्री कृष्ण के अनुग्रह और समृद्धि की प्रार्थना के रूप में व्यक्त होता है। आरती कुंजबिहारी की अत्यंत खूबसूरत और प्यारी आरती है। यह आरती मनोहर गीतों और आस्थानी तारों के साथ बेहतरीन प्रकार से रूप दिया गया है।

आरती कुंजबिहारी की||आरती कुंजबिहारी की लिरिक्स|| Powerful Aarti Kunj Bihari Ki 1
आरती कुंजबिहारी की||आरती कुंजबिहारी की लिरिक्स

आरती कुंजबिहारी की एक विशेष और अनोखी धार्मिक गीत है। यह गीत भगवान श्री कृष्ण के प्रति आदर के लिए गाया जाता है। इसके पाठ में, गीत का रचनाकार भगवान श्री कृष्ण की शान्ति, शास्त्रों के विषय पर आदर और प्रेम से गीत गाते हैं।

यह गीत भगवान श्री राम की कृपा, अनुग्रह, सम्मान और दया के लिए गाया जाता है। इसके अलावा, यह गीत सुख और शांति की शिक्षा देता है।

यह आरती आपको शांति, प्यार और आत्मसम्मान की भावना को उतारने में मदद करती है। यह आरती श्री श्याम की सुख और आनंद की दृष्टि से ली गई है। यह आरती तुम्हें आशा, आत्मसम्मान और आनंद की प्राप्ति के लिए मदद करेगी।

श्री कृष्ण जी को अर्पित यह अत्यंत मधुर और भक्तिमय आरती है और हमें पूरी उम्मीद है कि आप सभी को श्री कृष्ण को अर्पित यह पावन आरती काफी पसंद होगी और आप सभी इस आरती का उपयोग श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते वक्त अवश्य करेंगे  ……

आरती कुंजबिहारी की

आरती कुंजबिहारी । श्रीगिरिधर कृष्णमुरारी की । ( टेक ) 

गले में बैजंतीमाला , बजावै मुरलि मधुर बाला 

अवन में कुण्डल झलकाला , नंद के आनन्द नन्दलाला ॥

॥ आरती कुंजबिहारी । श्रीगिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ 

गगन सम अंग कांति काली , राधिका चमक रही आली , 

लतन  के  ठाढ़े  बनमाली  , भ्र मर – सी  अलक , 

कस्तूरी – तिलक  ,  चन्द्र – सी  झलक , 

ललित छवि श्यामा प्यारी की । श्रीगिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

कनकमय मोर – मुकुट बिलसै , देवता दरसन को तरसै , 

गगन  सों सुमन रासि बरसै , 

बजे मुरचंग , मधुर मिरदंग , ग्वालिनि संग 

अतुल रति गोपकुमारी की । श्रीगिरिधर कृष्णमुरारी की । 

जहाँ ते प्रकट भई गंगा , सकल – मल हारिणि श्रीगंगा , 

स्मरण ते होत मोह भंगा , 

बसी शिव सीस , जटाके बीच , हरै अघ कीच , 

चरन छवि श्रीबनवारीकी । श्रीगिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

चमकती उज्जवल तट रेनू , बज रही बृन्दावन बेनू , 

चहुँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू , 

हँसत मृदु मंद , चाँदनी चंद , कटत भव – फंद , 

टेर सुन दीन दुखारी की । श्रीगिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ 

आरती कुंजबिहारी । श्रीगिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की सूने : –

आरती कुंजबिहारी की

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